एलबर्ट आइन्स्टीन (Albert Einstein)
Albert einstein life story in hindi
कभी-कभी धरती मां ऐसे सपूतों को जन्म देती है, जो संसार में अपने महान कार्यों की अमर छाप छोड़ जाते हैं। एलबर्ट आइन्स्टीन भी धरती मां के एक ऐसे ही सप्त थे, जो मानव इतिहास में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपने कार्यों की अमर छाप छोड़ गए हैं। इस महान वैज्ञानिक को आधुनिक भौतिक विज्ञान का जन्मदाता कहा जाता है।
Albert einstein life story in hindi |
आधुनिक भौतिक विज्ञान के जन्मदाता
जन्म: 14 मार्च, 1879 उल्म (जर्मनी)
मृत्यु: 18 अप्रैल, 1955 प्रिन्स्टन (अमरीका)
यद्धपि उनका जन्म जर्मनी के उल्म (Ulm) नामक स्थान में हुआ लेकिन जब वे केवल एक वर्ष के ही थे तभी उनका परिवार म्यूनिख चला गया। आइन्स्टीन बचपन में बहुत ही शर्मीले स्वभाव के थे उनकी मां को पियानो बजाने का बड़ा शौक था। उनके पास बैठ बैठ कर वे भी पियानो सीख गए। कभी-कभी तो वे संगीत में इतने विभोर हो जाते थे कि उन्हें अपने भोजन तक की भी याद नहीं रहती थी।
बचपन से ही आइन्स्टीन की विज्ञान में बड़ी रूचि थी। एक बार उनके पिता ने उन्हें एक घड़ी भेंट की, जिसकी चेन में एक चम्बकीय कम्पास लगी थी। वे घड़ी को देखना तो भूल गए लेकिन उस चुम्बकीय कम्पास के विषय में अपने पिता से अनेक सवाल पूछते रहे।
आइन्स्टीन गणित में अत्यधिक प्रतिभाशाली थे लेकिन दूसरे विषयों में नहीं जब उनकी उम्र 15 साल की हुई तब उनका परिवार इटली चला गया। वहां से आइन्स्टीन को अध्ययन के लिए स्विटजरलैण्ड भेजा गया। स्विटजरलैण्ड के ज्यूरिख विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए वे एक परीक्षा में बैठे लेकिन फेल हो गए। एक साल तक और तैयारी करने के बाद वे फिर उसी परीक्षा में बैठे तब उन्हें दाखिला मिला। स्विटजरलैण्ड में ही गणित और भौतिक विज्ञान में उनकी प्रतिभा का वास्तविक विकास हुआ। सन् 1900 में |
उन्होंने अपनी शिक्षा समाप्त की और वे स्विटजरलैण्ड के नागरिक बन गए। शिक्षा समाप्त करने पर उन्होंने कई जगह अध्यापन कार्य किया लेकिन कोई भी स्थान उनके विचारों के अनुकूल न होने के कारण उन्होंने स्विटजरलैण्ड के पेटेंट ऑफिस में नौकरी कर ली।
उन्हीं दिनों यूगोस्लाविया की मिलेवा मैरिक नाम की एक छात्रा से उनका प्रेम हो गया और सन् 1903 में उन्होंने इस लड़की से विवाह कर लिया। आइन्स्टीन के दो पुत्र पैदा हुए। सन् 1904 की बात है। उन दिनों आइन्स्टीन अपने छोटे बच्चे को प्राम में घुमाने ले जाते थे तो उनके साथ एक नोटबुक होती थी। चाहे जहां गाड़ी रोक कर वे इस नोटबुक में गणित और भौतिकी की समस्याएं हल करते रहते थे। बाद में नोटबुक को देखने से पता चला कि ब्रह्मांड को समझने के लिए इस नोटबुक में बहुत सी समस्याओं का समाधान किया गया था।
सन् 1905 में जब आइन्स्टीन 26 वर्ष के थे तब उन्हें ज्यूरिख विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि मिली इसी वर्ष उन्होंने भौतिक विज्ञान की एक प्रसिद्ध पत्रिका में अपने अनुसंधानों से सम्बन्धित पांच लेख छपवाए । इन्हीं लेखों से आइन्स्टीन की ख्याति विश्व भर में फैल गई।
इनमें से एक शोध पत्र में यह दिखाया गया था कि जब पोटाशियम, टंग्स्टन आदि जैसी धातुओं पर प्रकाश पड़ता है तो इन धातुओं से इलैक्ट्रॉन निकलने लगते हैं। इन इलैक्ट्रॉनों को फोटो इलैक्ट्रॉन कहते हैं। इस प्रभाव को फोटो इलैक्ट्रिक प्रभाव कहते हैं। इस प्रभाव का सिद्धांत देने के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया।
दूसरे शोध पत्र में उन्होंने ब्राउनियन गति ( Brownian Motion) का अनुसंधान किया था। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी तरल पदार्थ में स्वतंत्रता पूर्वक लटके हुए कणों की गति तरल पदार्थ के अणुओं से लगातार टकराने के कारण होती है। तीसरे लेख में उन्होंने विश्वविख्यात सापेक्षिकता का सिद्धांत (Theory of Relativity) प्रस्तुत किया था। इस लेख में उन्होंने सिद्ध करके दिखाया था कि द्रव्यमान (Mass), दूरी (Length) और समय (Time) जैसी भौतिक राशियां (जिन्हें स्थिर माना जाता है) भी वेग के साथ बदलती रहती हैं। इस सिद्धांत ने समस्त विश्व में तहलका मचा दिया। इसी लेख में उन्होंने सिद्ध कर दिया कि ईथर जैसे माध्यम का कोई अस्तित्व नहीं है। यह सिद्धांत इतना जटिल था कि इसे उस समय विश्व के कुछ गिने-चुने वैज्ञानिक ही समझ सके।
चौथे लेख में उन्होंने द्रव्यमान और ऊर्जा की समतुल्यता के विषय में क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किया था। इस विचार के अनुसार यदि एक पौंड पदार्थ को ऊर्जा में परिवर्तित किया जाए तो उससे 70 लाख टन डायनामाइट को जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के समतुल्य ऊर्जा पैदा होगी। इसी सिद्धांत के आधार पर परमाणु बम बनाया गया जिसने सन् 1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी जैसे सदियों से बसने वाले नगरों को क्षण भर में खंडहर बना दिया।
पांचवें लेख में उन्होंने सिद्ध किया था कि प्रकाश कणों के रूप में चलता है जिसे फोटोन कहते हैं। सन् 1916 में उन्होंने जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (General Theory of Relativity) पर एक शोध पत्र प्रकाशित किया जिसमें ब्रहमांड की साकर्षण समस्या पर प्रकाश डाला या था।
सन् 1933 में जर्मनी पर हिटलर की तानाशाही छा गई। लोगों का बोलना बंद हो
गया। इस वातावरण में यहूदियों को बहुत यातना दी जा रही थी। इस यातना के लिए
आइन्स्टीन ने हिटलर का विरोध करना आरम्भ किया, जिससे वह नाराज हो गया। उन्हीं
दिनों आइन्स्टीन को एक भाषण देने के लिए अमरीका जाना पड़ा। अमरीका में ही उनके
दोस्तों ने एक पत्र लिखा कि वे लौटकर जर्मनी न आयें, नहीं तो इसका परिणाम ठीक न
होगा। उनकी अनुपस्थिति में उन पर बहुत बड़ा अभियोग लगाया जा चुका था। इस पत्र
के आधार पर आइन्स्टीन अमरीका में ही रुक गए और प्रिन्स्टन विश्वविद्यालय में उन्हें
एक अच्छा पद मिल गया।
अमरीका में रहकर प्रेसीडेंट रूजवेल्ट के समय में उन्होंने परमाणु बम के विकास पर बहुत काम किया। जब इन परमाणु बमों को हिरोशिमा और नागासाकी पर प्रयोग में लाया गया तो इस भीषण दुर्घटना को देखकर आइन्स्टीन का मन रो उठा। उन्हें ऐसे विनाश की स्वप्न में भी आशा नहीं थी। इस भीषण दर्दनाक दृश्य के बाद आइन्स्टीन जीवन भर परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगों के विषय में शिक्षा देते रहे।
भौतिक विज्ञान की सेवा करते हुए सन् 1945 में आइन्स्टीन प्रिन्स्टन विश्वविद्यालय से रिटायर हो चुके थे। इसके पश्चात् भी वे विज्ञान की सेवा करते रहे और 18 अप्रैल, 1955 को नींद की अवस्था में इस महान वैज्ञानिक का देहान्त हो गया।
आइन्स्टीन केवल एक वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि शांति के महान पुजारी भी थे। आइन्स्टीन ने अपने एक संदेश में मानव जाति से युद्ध समाप्त करने की प्रार्थना की थी। आइन्स्टीन को आदर देने के लिए एक नए तत्व का नाम आइन्स्टीनियम रखा गया है। आज उनकी मृत्यु को 30 वर्ष से भी अधिक हो गए हैं, लेकिन उनका मस्तिष्क आज भी प्रिन्स्टन अस्पताल में सुरक्षित रखा हुआ है। इसका अध्ययन कई अस्पतालों में किया जा चुका है। और अभी भी उस प्रकांड विद्वान की विद्वता के रहस्य को समझने के लिए वैज्ञानिक सर खपा रहे हैं।
by vikash sharma post by storylifelong .
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yes its nice story ...
ReplyDeleteth
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